Do you remember Kunan Pushpora ? भारतीय सेना पर उठा एक सवाल......
Do you remember
Kunan Pushpora ?
एक किताब के ज़रिये ये सवाल आज हर उस हिदुस्तानी से
जवाब मांग रहा है जो हर पल सेना की बहादुरी पर जश्न मनाते है ये उन लोगो से भी सवाल
कर रहा है जो हर कश्मीरी को एकसमान न्याय देने की बात करते है .23 फरवरी का वो दिन
आखिर कैसे भुला जा सकता है जब भारतीय सेना ने करीब 100 से भी ज्यादा महिलाओ के साथ
बलात्कार जैसा कुकर्म किया था. ये सवाल हम अपने आप से भी कर सकते है की कन्हैया
कुमार जैसा कोई शख्स जब ये सवाल करता है की जम्मू कश्मीर में सेना की ओर से महिलाओ
पर बलात्कार किये जाते है तो हमारा खून क्यों खौलता है,क्या ये सच नहीं है की 23
फरवरी 1991 की रात को जो बलात्कार हुए उसमे भारतीय सेना के राजपुताना राइफल्स
रेजिमेंट के ही जवान शामिल थे? ये सच भले ही सुनने और मानने के लिए कड़वा हो लेकिन
आखिर सच्चाई तो यही है और इससे बड़ा सच ये भी है की आज तक वो दरिंदे आज़ाद घूम रहे
है.बंदूक की नोक पर न कोई सबूत मिल पाया और न ही कोई गवाह और बाकी केस की तरह ये
भी केस भी एक परिणाम के साथ बंद हो गया ‘Untraced’.
बात यहाँ सिर्फ कश्मीर की नहीं है बल्कि सवाल उन
जवानो पर भी उठता है जो 2004 में मणिपुर बलात्कार कांड में शामिल थे.कश्मीर की तरह
यहाँ तो चुप बैठनेवाले लोग भी नहीं थे वहां की औरतो ने तो खुद कपडे उतारकर सरकार
और सेना के खिलाफ आन्दोलन किया था ये कहकर की बलात्कार उनका भी हुआ है लेकीन
बावजूद इसके न ही किसी जवान को कोई सज़ा मिल पायी और न ही 16 साल भूख हड़ताल के बाद
भी शर्मीला इरोम की मांग को कोई सुन पाया.ये सिलसिला यही ख़त्म नहीं होता इसी वजह ने
शोभा मंडी उर्फ़ उल्मा जिसका बलात्कार और उसपर अत्याचार किये गए थे उस महिला को
माओवादी संघटन बनाने को भी मजबूर किया.इतना ही नहीं इंडियन एक्सप्रेस की एक
रिपोर्ट की मुताबिक अक्टूबर 2015 में छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा करीब 15 महिलाओ पर
बलात्कार के मामले सामने आये.इन सब मामलो में अब तक किसी को भी कोई सज़ा नहीं सुने
गई.और सज़ा सुनाई भी कैसे जायेगी जब जांच करनेवाले अफसर को कोई सबूत ही न मिले और
रही बात गवाह मिलने की तो जान बचाने के लिए किसीका गवाह बनना तो लगभग नामुमकिन ही
हो जाता है.
यहाँ जवानो को या पुलिस पर सवाल करना भी गलत होगा क्योंकि
यहाँ सवाल उन लोगों का है जिन्होंने ये कुकर्म किये थे न की पूरी बिरादरी का.लेकिन
न जाने क्यों हमारी आस्था बिरादरी के लिए ही कुछ ऐसी बन गयी है की हम उसमे से इन
दरिंदो को ढूँढने में हर बार असफल रहते है और जो कोई इनके खिलाफ सवाल उठाता है हमे
लगता है वो पूरी बिरादरी के लिए गलत कह रहा है और फिर हर बार की तरह उस शख्स पर भी
देशद्रोही का लेबल लगा दिया जाता है.मेरा मानना तो ये है की हमारी आस्था चाहे
कितनी भी गहरी हो लेकिन उस आस्था के बीच अगर तुम उस एक गलत चीज़ को पाल रहे हो तो
तुम अपने भगवान् से गद्दारी कर रहे हो और अनजाने में तुम्हारी श्रद्धा पर सवाल
उठता है.उसी तरह हमारे जवानों और पुलिस पर हमे गर्व था और हमेशा रहेगा लेकिन उस
बीच अगर मैं उनमे से कुछ गलत लोगो को भी अपनी आस्था की पनाह में बचा रहा हूँ तो
मैं अपने देश के साथ कुछ न कुछ गलत कर रहा हूँ. बाकी भारत तो एक सेक्युलर देश है
और इसकी विभिन्नताओ पर हमे हमेशा गर्व रहेगा लेकिन उसकी इस विशेषता को बनाये रखने
के लिए हमे कुछ कड़े कदम दिल पर पत्थर रखकर उठाना ज़रूरी है........जय हिन्द!
अली शेख



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