निर्भया के साथ एक हुए जज़्बात आज किसानो के साथ क्यों नहीं आते ?
महाराष्ट्र में किसानो के हड़ताल पर आ रही प्रतिक्रियाए जायज़ ज़रूर है क्योंकि लोकतंत्र में हर किसीको अपना पक्ष रखने की आज़ादी जो है लेकिन जब बात उनके आन्दोलन के तरीके की आती है तो कई लोग उनके खिलाफ खड़े दिखाई दे रहे है शायद वजह ये भी है की इन लोगो को सिर्फ वही गरिब किसान देखने की आदत सी हो गई है जो अपनी खेती में कोलू के बैल की तरह काम करता है और अपने हक की लड़ाई लड़ते लड़ते खुद हारकर आत्महत्या कर लेता है.ये किसान कभी किसी और को तकलीफ़ नहीं पहुंचाता अपनी तकलीफों को खुद ही झेलता है और जब उसे सहने की ताक़त ख़त्म हो जाए तो अपने आप को इस बोझ से मुक्त कर देता है उसने कभी ये नहीं सोचा की ये तकलीफ़ उसे किसी सरकार द्वारा दि जा रही है या किसी राज्य या देश के प्रधान द्वारा,वो तो बस अपनी तकलीफ़ को अपना ही बोझ मानकर चलता है और पूरी जिंदगी उसे झेलने में बिता देता है लेकिन हालाँकि हकीक़त तो ये है की तमाम मेहनत के बाद उसके अनाज को भाव न मिलना उसकी नहीं बल्कि उसके सरकार की नाकामयाबी है लेकिन उसने कभी उन्हें इसके लिए तकलीफ़ नहीं पहुचाई ना ही उन्हें कोसा जो लोग उसकी मेहनत का अनाज खाते तो है लेकिन उसके हक के लिए कभ...